भगवद गीता के प्रेरणास्त्रोत न केवल धार्मिकता में ही निहित हैं, बल्कि वे जीवन के हर पहलू में एक नया दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। वे हमें सिखाते हैं कि जीवन की सफलता सिर्फ आरामदायक मार्ग पर चलने से नहीं, बल्कि संकटों, संघर्षों और परिश्रम से गुजरकर ही मिलती है।
जैसे भगवान कृष्ण ने अर्जुन को महाभारत के युद्धभूमि में उत्तराधिकारी बनने की प्रेरणा दी, वैसे ही हमें भी अपने जीवन के हर क्षेत्र में उत्तराधिकारी बनने की प्रेरणा लेनी चाहिए।
इस ब्लॉग के माध्यम से हमने भगवद गीता के अनमोल उपदेशों को जाना और उनका व्यापारिक जीवन में उपयोग करने का तरीका सीखा। आशा है कि आप भी इन प्रेरणास्त्रोतों को अपने जीवन में अमल करके उनके मार्गदर्शन में चलेंगे और जीवन के हर मोड़ पर उन्हें ध्यान में रखकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ेंगे।
Bhagavad Gita Motivational Quotes in Hindi
1. श्लोक: “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥”
मतलब: तुम्हारा अधिकार केवल कर्म में है, फलों में नहीं। इसलिए तुम फल के लिए कर्म करने में नहीं लगो, और कर्मों में मोह से बचो।
2. श्लोक: “योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥”
मतलब: हे अर्जुन, कर्म में तनिक बाँधकता और त्यागकर्तव्यता के साथ करो। फल में सिद्धि और असिद्धि में सम स्थित होकर समता को ‘योग’ कहा जाता है।
3. श्लोक: “बहिरन्तश्च भूतानामचरं चरमेव च।
सूक्ष्मत्वात्तदविज्ञेयं दूरस्थं चान्तिके च तत्॥”
मतलब: सभी भूतों के बाहर और भीतर में, स्थावर और जगत्तर की ओर, सूक्ष्मता से अच्छे से देखने योग्य, दूरस्थ और निकट में विद्यमान उस आत्मा को कभी नहीं जाना जा सकता।
भगवद गीता के ये सुनहरे श्लोक हमें अपने जीवन में सफलता, समृद्धि, और आत्मा के विकास की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं। इनका सही तरीके से अनुसरण करके हम जीवन के हर क्षेत्र में समर्पण और समता के साथ कार्य कर सकते हैं और अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में सफल हो सकते हैं।
4. श्लोक: “नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥”
मतलब: यह आत्मा न तो शस्त्रों द्वारा कट सकती है, न अग्नि से जल सकती है, न पानी से भिगो सकती है, और न ही हवाओं से सुखा सकती है।
5. श्लोक: “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥”
मतलब: हे भारत, जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं स्वयं को प्रकट करता हूँ।
भगवद गीता के ये श्लोक हमें आत्मा की अविनाशिता, आत्म-निग्रह, और धर्म के महत्व को समझाते हैं। ये हमें सिखाते हैं कि हमें स्वयं को अधर्म से बचाने के लिए समर्पित रहना चाहिए और धर्म के मार्ग पर चलने की दिशा में प्रेरित करते हैं।
6. श्लोक: “दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते॥”
मतलब: यह मेरी दैवी माया त्रैगुण्यात्मिका अत्यन्त दुर्गम है। परन्तु जो मुझे ही भजते हैं, वे इस माया को पार कर जाते हैं।
7. श्लोक: “श्रद्धावान्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥”
मतलब: श्रद्धावान और इन्द्रियों को संयमित रखने वाला व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करता है और ज्ञान प्राप्त करके वह परम शान्ति को शीघ्र ही प्राप्त करता है।
8. श्लोक: “कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः।
स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत्॥”
मतलब: जो व्यक्ति कर्म में अकर्म को और अकर्म में कर्म को देखता है, वही समझदार मनुष्य है, वही सच्चा योगी है, और वही सभी कर्मों का करने वाला है।
इन श्लोकों में भगवद गीता ने आत्म-निग्रह, भक्ति, और ज्ञान के मार्ग को स्पष्ट किया है। ये श्लोक हमें आत्मा के विकास और सफलता की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं। इन श्लोकों का अध्ययन करके हम अपने जीवन को एक नए दृष्टिकोण से देख सकते हैं और उसे सफलता और समृद्धि की ओर अग्रसर कर सकते हैं।
भगवद गीता के ये सुनहरे श्लोक हमारे जीवन में सही मार्गदर्शन प्रदान करते हैं और हमें आत्मा के विकास, समृद्धि, और सफलता की ओर प्रेरित करते हैं। इनका सही तरीके से अनुसरण करके हम अपने जीवन को और भी सफल और प्रामाणिक बना सकते हैं।